कुदरत के जलवे निराले हैं !


3 घंटे से ज्यादा का सफ़र हो और भोर से पहले पहुँचना हो तो रात 2 बजे निकलना ही था लोविना बीच के लिए .. हम चार दोस्त बड़ी सी टैक्सी में , कुछ देर बतियाये फिर सब सो गए पर पूरी रात की जागी मेरी आँखों में नींद नहीं थी । ऐसा नहीं कि पहले कभी भोर की पहली किरण से रूबरू नहीं हुई पर हर दिन ये अनुभव अलग होता है, ऐसा मेरा अनुभव रहा है चाहे स्थान न बदले, रुत न बदले पर ये जो कुदरत है, इसके जलवे ही निराले हैं ।
            घुप्प अंधेरे से छेड़छाड़ करती टैक्सी की हेडलाइट और खिड़की से बाहर आंखें गड़ाए मैं उन रास्तों को जानने पहचानने की कोशिश कर रही थी जो हमें एक अद्भुत अनुभव की ओर ले जा रहे थे। बस्ती थी कोई, और कुछ आकृतियां भी दिखीं (मेरी जैसी अतृप्त आत्माएं होंगी शायद 😜) उस रात चाँद भी पूरे रुआब के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहा था और हम बढ़ रहे थे एक संकरी सी सड़क पर लगातार । अनजान देश के अनजान शहर और एक अनजान टैक्सी ड्राइवर के भरोसे, पर जाने क्यों बाली बिल्कुल अपना सा लगा पहले क़दम के साथ ही । भाषा की दिक्कत तो थी मगर हम इंसानों में ये ख़ूबी तो है ही कि जरूरत के अनुसार ढल ही जाते हैं हम और जुगाड़ में तो हम हिंदुस्तानी माहिर हैं जैसे खाली पड़ी बियर की बोतल को बेलन बना कर सारिका ने सबके लिए परांठे बनाये और हाँ समोसे भी तो बनाये थे हमने 😂
                  अंधेरे ने अपना बोरिया बिस्तर समेटना शुरू कर दिया था जब हम लोविना बीच पहुँचे पर रोशनी अब भी नहीं हुई थी यानी अब भी कुछ वक्त था भोर होने में । सामने अथाह जलराशि और मंद-मंद बहती हवा ... कुदरत अपना जादू चला रही थी और बस इंतज़ार था पर्दा उठने का .. आसमान जैसे रंगों की परतें चढ़ा रहा था और मैं मोबाइल के कैमरे से उन रंगों को कैद करने की भरसक कोशिश कर रही थी (जाने किस घड़ी मुझे ये लगा कि वहां कैमरा ले जाना सुरक्षित नहीं 😞)
                  फिर पहली रोशनी की कतरन दिखाई दी मानो किसी ने अंगड़ाई ली हो और चादर से चूड़ियों वाले हाथ बाहर निकल आये हों। हर दिशा में एक अलग रंग ... कहीं रहस्यमयी सा सलेटी, कहीं धुला सा नीला, तो कहीं शर्मिला से गुलाबी। बहुत कोशिश की सब रंग समेट लूं पर कुदरत को कैमरा क़ैद नहीं कर सकता वो तो बस हमारी मोहब्बत की ही तलब रखती है । वो अद्भुत नज़ारा शब्दों में बांधने का असफल प्रयास नहीं करूंगी। लोविना मशहूर है सूर्योदय के खूबसूरत नज़ारे और डॉल्फिन्स की अठखेलियों के लिए तो हम सब तैयार थे लाइफ जैकेट्स पहने और इंतज़ार था रोशनी और मोटरबोट का ...
                 आसमाँ से लहरों तक प्रकृति का जादू पूरी तरह वश में कर चुका था जैसे और ऐसे में मोटर बोट ले गयी हमें बीचों-बीच जहाँ डॉल्फिन परिवार अठखेलियां कर रहा था। मोटरबोट को चालक ने बीचोंबीच ले जाकर बंद कर दिया और हम इंतज़ार करने लगे डॉलफिन परिवार का ... आसमाँ पर एक तरफ से बादलों का झुरमुट चला और देखते ही देखते बिखर गया जैसे कोई मैच शुरू होने वाला हो और सब खिलाड़ी अपनी-अपनी पोजीशन ले रहे हों । आसमान साफ हो चला था और तभी सामने कुछ हलचल दिखी और हममें से कोई चीखा "वो देखो डॉलफिन ..." और फिर सब एक साथ बोल पड़े , "शशशश ..." 4-5 डॉलफिन हमारे सामने कलाबाजियां खा रही थी और हम कुछ देर को चुपचाप बस देखते रहे । लगा कोई शोर उनके खेल में खलल न डाल दे, फिर जब वो दूर निकल गईं तो ध्यान गया कि हमारे आसपास और भी मोटरबोट आ चुकी थी अब तक। फिर सब चल पड़ीं एक साथ डॉलफिन की ओर .. कुछ देर तो अच्छा लगा पर अंदर से कहीं ये भी लगा कि हम नाहक अपने मनोरंजन के लिए उन्हें परेशान कर रहे । फिर हम अपने इशारों से चालक को समझाने लगे कि अब हमें समुद्र की सैर करा दे और हम दूसरी तरफ मुड़ गए जहाँ पानी की गहराई थोड़ी कम थी ।
        "वाह ये देखो नीचे कोरल और वो नीली सी ... अरे ये तो स्टारफिश है ... " तलछट में करीने से जमे हुए कोरल और आसपास लुकाछिपी खेलती रंग बिरंगे, बड़े-छोटे, तरह-तरह के रूपरंग लिए खूबसूरत जंतु ... ये गजब की सजावट बस कुदरत ही कर सकती है । समुद्र का खजाना बिखरा पड़ा था हमारे सामने पर सेफ्टी किट न होने के कारण हमारे लाख कहने और चाहने पर भी चालक ने हमें पानी में उतरने की इजाज़त नहीं दी ।
             "अभी चलते हैं शायद फिर कभी मुलाकात हो तुमसे प्यारे दोस्तो.." हमने शायद यही कहा होगा मन में और हम लौट चले थे किनारे की ओर। हम लौट तो रहे थे पर मन जैसे वहीं छूट रहा था और आसमाँ भी कुछ गमगीन हुआ था शायद तभी तो कुछ बूंदें लुढक कर हमारी ओर आ रही थी । इस प्यार में भीगे हम चल पड़े थे विला की ओर और इस बार नींद ने अपने आगोश में ले ही लिया ...

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)