साझा मुस्कान

कभी एक कहानी पढ़ी थी चींटी की जो बार-बार दीवार पर चढ़ने की कोशिश करती और फिसल कर गिर जाती पर उसने हार नहीं मानी और बार-बार प्रयास करती रही और फिर तक़दीर ने हार मान ली और उसकी जीत हुई ।
जाने ये कहानी क्यों याद आ गयी आज तुमसे बातें करते हुए ...
बातें तो थीं पर शब्दविहीन, साँसों का संवाद था, बहुत कुछ था कहने को पर सच पूछो तो कुछ भी नहीं था। कभी-कभी निराशा शब्द छीन लेती है, मन की ज़मीन जैसे बंजर हो जाती है और शब्द धीरे-धीरे मुरझा कर दम तोड़ देते हैं । नए शब्द उगाने के लिए मन की ज़मीन को पुनः उपजाऊ बनाने के लिए कुछ ज्यादा नहीं करना पड़ता ... बस थोड़ा इंतज़ार और मिट्टी ख़ुद ही संवार लेगी ख़ुद को ।
           पहली नाकामयाबी बहुत खलती है पर उससे भी ज्यादा खलता है उससे उबरने में लगने वाला वक़्त ! "काश इस वक़्त हम साथ होते … जब तुम्हें जरूरत है मेरी, मैं आ ही नहीं पायी वहाँ पर तुम जानते हो न कि हमारे बीच एक लम्हे की भी दूरी नहीं रही .."
"ये पूछ रही हो ?"
"नहीं बता रही हूं एक रिमाइंडर के लिए .."
और वो हँसते-हँसते बोला, "ठीक है सेव कर लिया रोज सुबह अलार्म के साथ बजेगा "
एक मुस्कान के साथ फ़ोन काट दिया गया ...
हाँ एक साझा मुस्कान !

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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