बेवजह

कुछ बातें बेवजह भी होनी चाहिए न !

जैसे किसी सर्द सुबह, शब की विदाई और नींद के साथ छोड़ जाने के बाद भी किसी बीते ख़्वाब को बंद आंखों में कसकर भींच लेना...

बेतरतीब सी बिखरी चीज़ों को समेटने की कवायद छोड़ उनके बीच ख़ुद को खोने की मोहलत देना ..

पुरानी डायरी के किसी खाली छूटे ज़र्द पन्ने पर चटक रंगों का जामा पहने कुछ लम्हे उकेर देना जो कभी जीने की चाहत भी न की हो..

बेवक़्त की जाग में उस एक भूले-बिसरे गाने को तलाश कर बार-बार सुनना जिसे भूले मुद्दत हुई..

ज़िद करके थामे रखना वो हाथ जो छूटे हुए अरसा हुआ, कुछ साथ ताउम्र साथ ही रहते हैं साथ छूट जाने के बाद भी... और कुछ  साथ रहकर कभी साथ नहीं होते...है न ?

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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