धीमे-धीमे गाऊं मैं ..

अपने ही ख्यालों में डूबी वह जब कभी वो गीत गुनगुनाती तो अक्सर मन वहाँ ले जाता जहाँ कुदरत की गोद में लेटे वह अपने हमसफ़र की आंखों में कितने ही प्रेम पत्र पढ़ लेती और उनके जवाब भी लिख देती अपनी उंगलियों से ... हर स्पर्श एक अलग हर्फ़ उकेरता और वह उतनी ही आसानी से पढ़ भी लेता उसमें छुपे कितने ही एहसास ... आख़िर ये उनकी ही तो गढ़ी हुई भाषा थी, महज़ एक हल्का सा स्पर्श भी इतना कुछ कह जाता जिसकी व्याख्या शायद कोई 200 पृष्ठ की पुस्तक भी न कर सके ।            
         आज से पहले कभी कहाँ समझ पायी कि उस गीत के इतने मायने क्यों थे उसके लिए, कि कहीं सबसे भीतर का कोना तक भीग जाता उसकी फुहार में, मौसम कैसा भी हो पर रिमझिम का सा एहसास देर तक, दूर तक भीगो जाता। आकाश की चादर में टंके सारे सितारे उसके साथी बन चुके थे जिनसे घंटो बतियाते कितनी ही रातें सहेजती गयी अपनी डायरी के कोरे कागज़ों में ताकि अगर किसी दिन किसी मोड़ पर अचानक मिल जाए वह हमसफ़र तो तोहफे में दे सके ।
     आज अरसे बाद जब उसने अपने पसंदीदा गीत भेजे तो अचानक वही गीत स्मृतियों की कैद से रिहा हो गया, साथ ही रिहा हो गए कुछ रंग, कुछ लकीरें, कुछ हसरतें और वो भीनी सी ख़ुशबू जो अक्सर सांझ से ही उसे अपने आगोश में समेट लिया करती थी। कभी अनजाने-अनदेखे हमसफ़र के साथ गाए उस गीत को आख़िर उसके सही मुक़ाम तक पहुँचा ही दिया... देखो गा रही है वही गीत आज फिर से डूबकर ...

"झिलमिल सितारों का आँगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा "

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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