कोई अपना सा

आजकल वह अक्सर तलाशती है
कोई वज्ह ख़ुश होने की..
कभी उन पुराने भूले-बिसरे नगमों में,
जिन्हें गाते-गुनगुनाते घर भर में थिरकती थी...
तो कभी अपनी डायरी के ज़र्द हो चुके पन्नों में,
जिनमें दर्ज़ हैं कितने ही हसीन लम्हे...
कभी ढ़ीले पड़ चुके एल्बम की तस्वीरों में,
जो गवाह हैं कुछ महकते रिश्तों की..
कभी जुट जाती है रसोईघर में,
ये भूलकर कि अब किसी के दिल का रास्ता
उन पकवानों से होकर नहीं जाता...
जाने कबसे घुट रहे हैं बादल पर बरसते ही नहीं
शायद उसी की तरह ज़ब्त किये बैठे हैं अपने एहसास
अपने दर्द
अपने शिक़वे
और हर लम्हा बिखरते ख़्वाबों की टूटन ...
झूले पर अनमनी सी अधलेटी
वह अक्सर खोजती है
कोई चेहरा उस सलेटी-सफ़ेद पर्दे पर
इस आस में कि धरती पर न सही
आसमाँ में ही दिख जाए
'कोई अपना सा'

💕 किरण

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