मैं अनामिका !

"अपनी ज़िंदगी से जुड़े हर शख़्स को कोई न कोई नाम दिया मैंने पर तुम ही हो जिसे कोई नाम नहीं दे सका.." तुमने कहा तो ऐसा लगा कहीं कुछ तो छूटा था जो अनकहा ही रहा हमेशा तुम्हारे मेरे बीच।

"मैं एक पहेली ही सही तुम्हारे लिए पर ये भी सच है कि तुम्हारे सिवाय मुझे किसी और ने जाना भी नहीं, समझा भी नहीं ... ये जो एहसास हैं लहरों की तरह हमारे बीच से गुज़रते हैं पर ये उस बारहमासी नदी की लहरे हैं जो गुज़र कर भी गुज़रती नहीं कभी पूरी तरह।" हर्फ़ दर हर्फ़ तुम्हारे-मेरे बीच का पुल पार करती मैं कभी तुम तक पहुँची ही नहीं मगर ये भी तो सच है कि तुम्हारा साथ कभी छूटा भी नहीं .." मेरे अल्फ़ाज़ अक़्सर यूँ ही तुम्हें छूकर चुपके से लौट आते हैं ।

"कोई एक नाम मुझे मिला ही नहीं जो तुम्हें पूरी तरह समेट सके ... एक चंचल मगर गहरी नदी सी, तुम्हारे साथ हर पल मगर तुम्हें शब्दों में बांधना मुमकिन नहीं क्या करूँ?" अपनी ही रौ में कहते गए तुम और मैं ... मैं बस भीगती रही उस पेड़ से लिपटी हुई जिसे तुमने कुछ ही पल पहले छुआ था।

सुनो, एक पुल हम हर रोज़ लिखेंगे, कभी तो मिलेंगे हमारे अल्फ़ाज़, जैसे चुपके से मिला करते हैं हमारे एहसास !

#सुन_रहे_हो_न_तुम
💕किरण

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