चंद लम्हे ही तो

तुमने ठीक कहा कि कुछ भी बेवज़ह नहीं होता, यूँ ही नहीं होता... कोई रास्ता दिखाई दे तो कहीं जाकर तो रुकेगा ही, भले ही मनचाही मंज़िल या पड़ाव न भी हो पर उस सफ़र का कोई तो मक़सद होगा, एक गलत मोड़ भटका सकता है पर अनुभव का एक पन्ना तो जोड़ ही देगा। याद है चट्टानों के पीछे से बहती वह पतली सी धारा, जिसे हम छोड़कर आगे बढ़ गए थे फिर कुछ क़दम चलकर लगा जैसे किसी ने पुकारा हो, "चंद लम्हों के तलबगार हम भी हैं, आज कस्र ही सही पर क्या जाने हम भी किसी झरने या नदी का हिस्सा रहे हों, एक स्पर्श स्नेह का ...चलो एक नज़र ही सही.."

#सुन_रहे_हो_न_तुम

❤️किरण

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