बारिशें और टीन शेड

बारिशें तो हमेशा से पसंद थीं मगर जैसे एक ख़ास ज़ायका सा जुड़ गया अब ... नमी सोख कर हवा में इत्र सा घोलती प्यासी मिट्टी तब भी लुभाती थी मन को और ऐसा लगता अपने भीतर ही उतार लूँ सारी महक और ताउम्र महकता रहे मन ... मगर अब तो जैसे जादू कर देती है और मन बेक़ाबू होकर मचलने लगता है, शायद जानता है न कोई और भी है इसी ख़ुशबू का दीवाना !
    रेतीले बवंडर अपनी दुश्मनी निभाते रहे आज भी बदलियों से और धकेलते रहे, ठेलते रहे उन्हें पर उन्होंने भी जैसे ठान ही लिया था ... एक शाम मेरे नाम करने का ! फिर शुरू हुई गुफ़्तगू तो तुम्हारी सारी बातें साझा की हमनें .. तुम्हारी तरह अब मुझे भी तो भाता है वो क़ुदरत का संगीत जब बूंदें नाचती गाती हैं टीन शेड पर .. टप-टप , छन-छन छना छन...  नए-नए लगे टीन शेड के नीचे खड़ी मैं देर तक खोई रही उस मधुर संगीत में और बूंदें बस थिरकती रहीं उस पर । कितना बोलते हो तुम और मैं कभी याद रखने की कोशिश नहीं करती कुछ क्योंकि मेरा मानना है कि हर आने वाला लम्हा तुम्हारे साथ बीते लम्हे से ज्यादा खूबसूरत होगा... मगर फिर भी कुछ नहीं भूलती ... तुम्हें मेरा कहा हर शब्द याद रहता है, वो सब भी जो मैं ख़ुद भूल चुकी होती हूँ और जब-तब बातों-बातों में मुझे भी याद कराते हो मेरा कहा जो जाने किस ख़ुमारी में मैंने तुमसे कहा । आज मन हुआ मैं भी परखूँ अपनी चाहत तुम्हारे प्रति और सब याद करूँ जो तुमने कहा ... हाँ सब दोहराया मैंने और वो बदली बस मुग्ध सी सुनती रही देर तक , जरूर उसकी भी होगी एक प्रेम-कहानी तभी बेसुध सी ये भी भूल गयी कि उसके संगी-साथी मेरी छत से कबके विदा हो गए ...
      बारिशों के मौसम से पहले की ये आंधियां और बेमौसम बारिशें बहुत डराती हैं, झंझोड़ देती हैं अधपके ख़्वाबों की बालियों को ... डरता है मन कहीं बेवक़्त झड़ न जाएं, अनचाहे ही याद दिलाया करती हैं वो सूखे सावन और बंजर रातें जिन्हें बस अश्क़ों की ही नमी हासिल थी । तुम पास नहीं, साथ नहीं मगर फिर भी मन को इंतज़ार रहता है ... बारिशों का ... जाने क्यूँ ? हाँ जानती हूँ तुम्हारे पास इस का भी कोई वाज़िब जवाब होगा !

#सुन_रहे_हो_न_तुम

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