नीम ख़ामोशी

इन दिनों सर्द हैं हवाएं,
जम से गए हैं अल्फ़ाज़
हाँ भीतर कुछ अधजमे से एहसास
अब भी जिंदा हैं....
बेतहाशा शोर करते हैं वो ज़र्द पत्ते,
जिन्हें ढक दिया है बर्फ ने
मगर ये शोर भी तो दफ़्न है
उस बर्फीली परत के नीचे
कसमसाते है आज़ादी के लिए
मगर नहीं है मयस्सर उन्हें
वो ओस सी खिलखिलाहट,
वो भोर की गुनगुनाहट,
वो गुनगुनी धूप भी नहीं मिलती उनसे इन दिनों ...
कैसे कहूँ
बहुत सताती है ये
नीम-ख़ामोशी !

-किरण

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