Manali Diaries # 3

चंडीगढ़ से बस का टिकट तो मनाली के लिए ही लिया पर मन था कि मनाली में रुकने के बजाय कुल्लू रुकना बेहतर होगा । इसके तीन कारण थे, पहला और मुख्य कारण था मनाली में मिलने वाली पर्यटकों की भीड़ ... दूसरा कारण था कुल्लू में अधिक पर्यटकों के न ठहरने के कारण होटलों के कमरे तुलनात्मक रूप में किफ़ायती होना.... तीसरा कारण जिसकी तरफ ज्यादातर पर्यटकों का ध्यान नहीं जाता, वो है लगभग सभी दर्शनीय स्थलों तक जाने का मार्ग कुल्लू होकर ही जाता है ।
        मगर बात फिर वही थी कि हमारी नियति में तो कुछ और ही लिखा था ! हमारी बस पंजाब की सीमा पीछे छोड़ हिमाचल में प्रवेश कर रही थी कि एक सहयात्री पीछे से आगे चला आया और बस कंडक्टर से बतियाने लगा। कुछ ही देर में उनकी बातों में हम भी शामिल हो गए और तब मन ही मन अपने निर्णय पर संतुष्टि हुई कि मनाली केवल भ्रमण हेतु ही उचित रहेगा, ठहरना कुल्लू में बेहतर होगा । तभी कंडक्टर साहब बोल पड़े, "कुल्लू से भी बेहतर भुंतर में ठहरने की सोचिए क्योंकि कुल्लू से भी किफ़ायती है भुंतर और सभी रास्ते वहीं से कटते हैं तो टैक्सी भाड़ा भी कम लगेगा, समय की बचत भी होगी और सबसे प्रमुख बात भीड़-भाड़ से दूर स्थानीय लोगों के बीच रहने का अनुभव निश्चय ही यादगार रहेगा ।"
भुंतर कुल्लू जिले का लगभग 4000 की आबादी वाला नगर है, वहीं पर कुल्लू एयरपोर्ट भी है तथा लगभग सभी दर्शनीय स्थलों तक जाने के लिए वहाँ से बस व टैक्सियाँ उपलब्ध हैं।
अब सवाल ये था कि भुंतर में कहाँ ? तो इंटरनेट पर ढूंढने पर बहुत कम होटल नज़र आये और जो थे भी तो वो बुक हो चुके थे । जो उपलब्ध थे उनकी दरें हमारी पॉकेट से कहीं ज्यादा, ऐसे में कंडक्टर साहब ने देवदूत बनकर हमें उबार लिया। उन्हीं के मित्र के परिचित का कॉटेज है भुंतर में जिसके पीछे से नदी बहती है । लोकेशन तो उनकी बातों में ही मन को भा गयी पर उपलब्धता, कॉटेज का किराया और सुविधाएं देखनी बाकी थी। उन्होंने अपने मित्र से बात की और आनन-फानन में कॉटेज के मालिक से हमारी फ़ोन पर बात भी हो गयी। एक छोटे नगर में उतरना शतरंज के ऐसे दांव की तरह था, जहाँ हो सकता था हमारी शह और मात भी हो सकती थी, अगर किसी कारण हमें कॉटेज पसंद नहीं आता या और कोई कमरा नहीं मिलता, ऊपर से सूर्य देवता विदा लेने की जल्दी में थे, तो थोड़ा मन आशंकित भी था । ईश्वर का नाम लेकर हम भुंतर के स्टॉप पर उतर गए और वहीं से कॉटेज का मालिक हमें कार में लेने आया। जाने क्यों वह 30-32 साल का युवा अपरिचित लगा ही नहीं , एक निश्छल सी मुस्कान लिए वह हमें कॉटेज दिखाता रहा पर मैं और मेरी सखी तो आंखों ही आंखों में सहमत हो चुके थे। सड़क से थोड़ा ऊपर की ओर स्थानीय घरों के बीचों-बीच बना एक दो-मंजिला कॉटेज, वो भी इतनी किफ़ायती दर पर मिलना ! हॉल जिसमें खुली रसोई, ड्राइंग-डाइनिंग, ऊपर एक लिविंग एरिया साथ ही दो बैडरूम, आगे एक बालकनी। कॉटेज के बाजू में एक और बड़ा कॉटेज और दोनों का साझा छोटा सा फूलों भरा बगीचा, सड़क के उस पार कुल्लू की पहाड़ियों का ख़ूबसूरत नज़ारा और कुल 200 मीटर दूर बहती पार्वती नदी और पुल के आगे पार्वती और व्यास नदी का समागम स्थल ... 10 मिनट में वहाँ रुकने का निर्णय लेना इतना आसान लगा कि कोई संशय मन में आया ही नहीं ।
      कॉटेज मालिक राजवीर से इस तरह ट्यूनिंग हुई कि उन्होंने तुरंत भाँप लिया कि हम आम टूरिस्ट की तरह केवल मनाली-रोहतांग देखने नहीं आये। अरे हाँ, एक और जनाब से भी परिचय हुआ, टीटू उर्फ़ टीकमराम , 18 वर्षीय कॉटेज का केयरटेकर जो दिन-रात कॉटेज की देखभाल और रखरखाव के लिए था। बेहद मासूम, प्यारा सा बच्चा जो अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अनुभव के लिए राजवीर के साथ जुड़ा हुआ था।
     
#kiran

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