Manali diaries # 1
खूबसूरती तो चप्पे-चप्पे में बिखरी है बस वो नज़र चाहिए जो उसे ढूंढ सके !
15 साल पहले जिन वादियों से मुलाक़ात हुई थी मनाली में, उनमें इस बार जंगली घास की तरह बेतरतीब ढंग से बड़े-बड़े होटल उगे हुए देखे ... घाटियों में पेड़ों की जगह घरनुमा गेस्ट हाऊस भी दिखे जो मख़मली कालीन में पैबंद से दिखे। जाने से पहले ही जानती थी यही सब दिया होगा अंधाधुंध बढ़ती हुई आबादी ने ! नहीं वहाँ के बाशिंदों की नहीं ये तो वो आबादी है जो वहाँ फैली कुदरत की अकूत संपत्ति का तेजी से व्यवसायिक लाभ के लिए दोहन करने आ पहुँचे हैं और अपशेष में प्रतिदिन छोड़ रहे हैं कंक्रीट और कंक्रीट । पर्यटन से आय वहाँ के बाशिंदों को भी हो रही है, इसमें कोई दोराय नहीं पर एक बड़ा हिस्सा उन धनकुबेरों का है उस आय में, जिन्होंने अपनी 'पहुँच' से उन ख़ूबसूरत वादियों में उगा दिए हैं बहुमंजिले होटल, हालाँकि वहाँ के स्थानीय बाशिंदे भी अब होड़ में आ गए हैं और सच कहूँ तो कसोल और मणिकरण की दुर्दशा देखकर बरबस ही पुरानी यादें आंखों के आगे घूम गयीं जब आसमान छूते बड़े-बड़े चीड़ के पेड़ घनी वादियों में लहलहाया करते थे और अब वहाँ कंक्रीट, कूड़ा और हवा में घुली ड्रग्स और दारू जो युवाओं का सबसे बड़ा आकर्षण है ।
दर्द से मन भारी था तो उगलना जरूरी था ताकि नई ख़ूबसूरत यादों को दिल में जगह मिल सके ... तो उन ख़ूबसूरत यादों से मिलते हैं अगली किश्तों में , सारी कड़वाहट यहीं छोड़कर इस उम्मीद के साथ कि प्रशासन बहुत जल्द कुछ सख्त कदम उठाएगा इस ओर !
#kiran
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