ये उम्र गुज़र गयी !

तुम समझे नहीं
खामोशियों की ज़ुबाँ
और लफ्ज़ ढूंढते उम्र गुज़र गयी ।
आधी सदी की मुहब्बत
या आधी सदी की तलाश
तुम मुझमें ही कहीं थे,
मैं तुम्हीं में रची-बसी
इस बेनाम से मरासिम को
आख़िर क्या नाम देते हम?
अच्छा ही हुआ न,
इसी कश्मकश में ये उम्र गुज़र गयी ...
सभी तो कहते हैं
रिश्ते निभाये जाते हैं
पर मैं बस तुम में,
और तुम मुझ में जीते रहे
और देखो
ये उम्र गुज़र गयी !
©विनीता सुराणा किरण

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