जीवित

तुम्हारे कमरे में
बेतरतीब सी बिखरी
पर ज़िन्दगी से लबरेज़ तुम्हारी चीज़ें,
तुम्हारी स्केच बुक में मुस्कुराते, खिलखिलाते चेहरे
तुम्हारी आधी पढ़ी किताबों में दबे,
पन्नों पर उकेरे कुछ पूरे, कुछ अधूरे रूमानी गीत,
दीवार पर टंगी,
तुम्हारे स्पर्श से अब तक रोमांचित ये गिटार,
इन सबके बीच शायद
मैं ही जीवित नहीं ...
©विनीता सुराणा किरण

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