नज़्म


आज फिर लिखा है न
एक ख़त तुमने
इन बूँदों पर
मेरे नाम,
तभी तो थिरक रही हैं
ये बूँदें
फिर दे रही हैं पैग़ाम
तुम्हारे आने का !
©विनीता सुराणा 'किरण'

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