तुम्हारा ख़त

आज फिर लिखा है न
एक ख़त तुमने
इन बूँदों पर
मेरे नाम,
तभी तो थिरक रही हैं
ये बूँदें
फिर दे रही हैं पैग़ाम
तुम्हारे आने का,
©विनीता सुराणा किरण

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