कुछ कहा भी नहीं

कुछ कहा भी नहीं
बाकी मगर
कुछ रहा भी नहीं
जो तुझ से थे वाबस्ता
उन लम्हों में
तू रहा भी नहीं
हर शाम मल्हम सी लगी
जाने क्यों फिर
कोई ज़ख्म भरा ही नहीं
रातों की वो बातें
ख़्वाबों की सौगातें
अपनी ही होंगी मगर
कुछ अपना सा ...
लगा ही नहीं
©विनीता सुराणा 'किरण'

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