मज़्मून

जानती हूँ !
कोई लिखता नहीं है ख़त आजकल
पर मेरा शौक़ है ख़त लिखना....
आसाँ होता है इन ख़तों में,
दिल में उमड़ते
हर जज़्बात को अल्फ़ाज़ देना,
गिले-शिक़वे
स्याही के साथ बहा देना,
किसी अज़ीज़ को बिन बताये
आवाज़ देना,
ये ख़ुशबू भरे ख़त तो ज़रिया हैं
तन्हाई के सुलगते लम्हों में
किसी को याद कर मुस्कुराने का,
संभाल कर रखे ये ख़त
मुद्दतों बाद भी
महफूज़ रखेंगे यादों की भीनी ख़ुशबू,
हर्फ़-हर्फ़ में महकेंगे
कुछ अनछुए एहसास
और याद दिलाएंगे मुझे
कि मेरे लिखे
हर इक ख़त का मज़्मून
'तुम' हो !
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)