ख़्वाबगाह

जब साज़िश करे नफ़रत
तो सहम जाती है मुहब्बत
पर रुकती नहीं,
हारती भी नहीं,
जज़्ब करके सारा विष
बस उगलती है अमृत...
क्यूँकि तूफ़ान आए
तो लहरें होती हैं वाचाल
समुन्दर तो वही है
धीर-गंभीर और स्नेहिल
आख़िर नदियों की
ख़्वाबगाह जो है !
©विनीता सुराना किरण

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)