मुहब्बत

क्या कहूँ तुमसे...
हाँ सच है ये
दरमियाँ हमारे
कुछ भी नहीं,
न लफ़्ज़ों के पुल
न ख़्वाहिश की डोरी
न रिश्तों की बंदिश
न रस्मों के बंधन,
मगर फिर ये कैसी
कशिश है बताओ ज़रा,
इसे नाम दूँ क्या,
इसे मैं कहूँ क्या?
बेनाम हसरत
अधूरी कहानी
न तुमने सुनी
और
न हमने ही जानी
शायद इसी को
कहा है किसी ने
मुहब्बत
मुहब्बत
हाँ बस
मुहब्बत !
©विनिता सुराना किरण

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