आरज़ू

छोड़ दिए
खुले आसमाँ में
ख़्वाहिशों के परिन्दे ...
कभी लौटेंगे,
अब्र की रुई में लिपटे,
दुआओं की बूँदों में भीगे,
बस इक छोटी सी आरज़ू को
चुपके से छुपाकर रख लिया
हथेली के कोने में ....
©किरण

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)