ये किस मोड़ पर मिले हो तुम

ये किस मोड़ पर मिले हो तुम
जब आदत हो गयी है
तन्हाई की,
ख़ुद से ख़ुद की
रुसवाई की,
चुपके से सरक आती
खामोशियों की,
बेख़ौफ़ लिपटती
परछाईयों की....
फिर ये कैसी सरसराहट है
मन के गलियारों में,
जैसे दस्तक दी हो
फिर एक अहसास ने
चुपके से ...
जी चाहता है
पुकार लूँ तुम्हें
पर क्या तुम सुन पाओगे,
मेरे ख़ामोश लफ़्ज़ !
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)