तेरा ख़्याल

वो मीठा सा एहसास
अब भी तारी है
मन है कि आगे बढ़ता ही नहीं
कदम यूँ थमे
कि वक़्त ने छोड़ दिया साथ
बस मैं हूँ
मेरा पागल मन
और तस्सवुर में
तेरा ख़्याल !
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)