अब तुम्हारी बारी है

उनींदी आँखों में उतरा
ख़ूबसूरत सा ख़्वाब
और जी उठा
ये तन्हा मन
रात गुज़री ...जैसे पलछिन,
ख़ुमारी थी कुछ अज़ब सी
जो सुबह तक तारी है
मानो कह रही हो
'किरण', अब तुम्हारी बारी है !
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)