यादें


रात के आग़ोश में
कुछ ख़्वाब कसमसाए थे,
जाने क्यूँ ..
शबनम के कुछ क़तरे
अब भी लिपटे है
मेरी पलकों से,
शायद वो
भीनी सी महक तुम्हारी
अब भी वाबस्ता है
मेरी साँसों से !
©विनीता सुराना 'किरण'

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