पहरा

बिंदी भी है
काज़ल भी
लाली है ...
मांग में ,
लबों पर ,
आँखों में भी !
अजब सा नशा है
पर फिर भी 'किरण'
कुछ तो अधूरा सा है....
मन पर आज पहरा सा है !
©विनीता सुराना 'किरण

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