मगरमच्छ (लघु कथा)

पहली बार गाँव आये पत्रकार दोस्त को गाँव के बड़े तालाब ले गया सरपंच का बेटा ...टहलते-टहलते तालाब में हलचल सी दिखी ...गौर से देख दोस्त बोला "अरे वो देखो मगरमच्छ, कहीं किसी को नुक्सान पहुँचा दिया तो..." जिसका गाँव जिसका राज उससे कौन सा छुपा हो राज़ परंतु अपनी हेटी कैसे दिखा दे , अपने सु(कु)राज़ पर कैसे दाग दिखा दे तो झट से बोल पड़ा "अरे नहीं भाई बड़ी मछली है बहुत सारी तालाब में, मगरमच्छ का तो प्रश्न ही नहीं , हम सारे गाँव वालों की सुरक्षा का बहुत ध्यान रखते हैं"
तभी एक गाँव वाला गुज़रा उधर से , दोस्त ने पकड़ लिया और पूछा "भाई यहाँ बड़ी-बड़ी मछलियाँ है, पकडे हो कभी?"
"मछलियाँ ? अरे बाबू यहाँ तो मगरमच्छ......"
"अरे क्या रामकिशन , कितनी बड़ी-बड़ी मछलियाँ हैं यहाँ ...बताओ भाई हमारे पत्रकार मित्र को..", सरपंच के बेटे ने आँखों से इशारा किया ।
समझदार रामकिशन झट पकड़ा इशारा और बोला "हाँ भैया जी सही बोले आप! शहर वाले भैया वो बात ये है कि यहाँ मगर थे पहले पर सरपंच जी और भैया जी की कृपा से अब सब हटा दिए यहाँ से अब तो बड़ी मछलियाँ ही हैं ...हम भी कभी-कभी पकड़ ले जाते हैं भैया जी की मेहरबानी से ....वो भैया जी इस बार हमारा अनुदान तो मिल जाएगा न ? "
"अनुदान ? कौन सा ...अरे हाँ जरूर ..जरूर भाई हम तो है ही गाँव के सेवक ...तनिक भी चिंता न करो " घूरते हुए एक मुस्कान होंठों से चिपकाए सरपंच का बेटा बोला।
मगर ने भी चैन की सांस ली और दूर निकल पड़ा दूसरे छोर की ओर ....
©विनीता सुराना 'किरण'

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