तुम्हारे लिए

कितनी पगडंडियाँ
कितने पड़ाव
कितने अवरोधक
कितने बवंडर
पर कहाँ कभी रुका ..
विचलित तो हुआ
मगर थमा नहीं
ये अश्व रुपी मन...
यादों के सायों से घिरा तब भी नहीं,
अपनों से दंश मिले तब भी नहीं,
अच्छे बुरे सभी अनुभव
आत्मसात किये बढ़ता ही रहा
निरंतर ...
सरपट दौड़ा कभी
तो वक़्त को भी पछाड़ दिया
कल्पनाओं का सुनहरी संसार बसाया
जहाँ तक वक़्त भी नहीं पहुँचा ...
कभी भीनी सी यादों से मुलाक़ात करने चला
तो वक़्त भी एक बारगी पीछे लौट चला जैसे...
जीवन के कितने ही रंगों ने भिगोया
पर मन का अपना एक रंग है
अनुभूति का रंग
एहसासों का रंग
जिस पर कोई और रंग चढ़ा ही नहीं ....
स्मृतियाँ लहू बनकर दौड़ती है
आज भी रगों में
तो किसी लगाम से रुका ही नहीं
बस सरपट दौड़ता ही रहा
एक जुनून
एक ख़्वाहिश लिए
तुम्हारे लिए !
बस तुम्हारे ही लिए .....
©विनीता सुराना 'किरण'
Painting साभार सुरेश सारस्वत जी

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