मुट्ठी भर आसमाँ (मुक्तक)

चंद क़तरे ख़्वाहिशों के, किर्चियाँ ख़्वाबों की हों कुछ।
रंग बिखरे हर तरफ़ हों, खुशबुऐं फूलों की हों कुछ।
अब नहीं ख़्वाहिश परों की, चाँद को छूना नहीं है,
एक मुट्ठी आसमाँ बस, झालरें तारों की हों कुछ।
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)