नारी (विडालगति सवैया छंद)


कष्टों से जूझेगी, धाराएँ मोड़ेगी, चट्टानें तोड़ेगी, नारी ये जीतेगी।

दुःखों की आंधी में, ठंडी-ठंडी सी ये, बौछारें लायेगी, नारी ये जीतेगी।

रातें अंधेरी हो, काँटों की झाड़ें हो, राहें भी मोड़ेगी, नारी ये जीतेगी।

साथी है ये सच्ची, रिश्तों की डोरी में, बांधेगी थामेगी, नारी ये 
जीतेगी।

©विनिता सुराना 'किरण'


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