विडालगति सवैया छंद


शब्दों को साधेगें, छन्दों में बाँधेंगें, गीतों के वृंदों से माता को ध्याएंगें ।

सोने की बाली से, सिन्दूरी लाली से, तारों की साड़ी से माँ को श्रृंगारेंगें।

फूलों के रंगों से, होली खेलेंगीं माँ, चाँदी की डोली में बैठा के लाएंगें।

दीपों की माला है, भीनी रंगोली है, माँ आएँगी द्वारे, झूमेंगें गायेंगें।

©विनिता सुराना 'किरण'

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