फ्रेम

क्या खूब सजाये रंग तुमने 
लाल रंग प्रेम का, 
हरा विश्वास का, , 
पीला आस्था का,
सफ़ेद समर्पण का 
और गढ़ दी एक तस्वीर 
सौंप दी मुझे 
अपनी ज़िन्दगी कहकर ....
मैं दीवानी !
सहेजती रही उसे ,
अपनी ख्वाहिशों को जमाती रही 
ताकि उनकी गर्मी 
पिघला न दे तुम्हारे रंग ,
अपने ख्वाबों को सुखाती रही 
ताकि नमी में उनकी 
बह न जाएँ रंग तुम्हारे ....
फिर क्यों आज वही तस्वीर 
खोने लगी है चमक अपनी ,
फ़ीके पड़ने लगे हैं रंग ,
तड़कने लगा है शीशा ,
बस एक फ्रेम है 
उन कसमों का ,
उन रस्मों का , 
जिन्होंने कभी बाँधा था हमें 
गठबंधन में ,
बस वही फ्रेम है ,
जो अब तक जकड़े है 
तस्वीर हमारी !
©विनिता सुराना 'किरण'

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