प्रेरणा (कहानी)


सभागार करतल ध्वनि से गूँज रहा था, नव्या की आँखों में मिश्रित भाव तैर रहे थे ..... हर्ष था क्योंकि उसकी तपस्या सफल हुई थी और कहीं भीतर एक कौने में टीस भी थी उस बीते समय की जो रह-रह कर अब भी उसकी आँखों के समक्ष अपनी पूरी वीभत्सता के साथ चल-चित्र की भांति घूम जाता है | आज उसके जीवन का सबसे बड़ा दिन था, उसे साहित्य व कला के क्षेत्र में उसके योगदान के लिए एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा सम्मानित किया जा रहा था, परन्तु उसकी आँखें उस भीड़ में जिसे तलाश रही थी वो कहीं नज़र नहीं आ रहा था, उसकी यहाँ तक की यात्रा का प्रेरणा स्रोत ....... प्रभात, जो शायद स्वयं भी इस तथ्य से अनभिज्ञ था |
            घर तक का रास्ता आज बहुत लम्बा प्रतीत हो रहा था, जाने कब पुरानी यादें एक-एक कर उसके सामने आने लगीं | मध्यमवर्गीय परिवार की लाड़ली बेटी और दो भाइयों की इकलौती बहन नव्या खूबसूरत और प्रतिभाशाली तो थी ही, उसकी सादगी और व्यवहार कुशलता ने शीघ्र ही उसे कॉलेज में लोकप्रिय बना दिया | एक दिन बस स्टॉप से घर के रास्ते में उसका सामना अनूप से हुआ, अचानक यूँ किसी को अपना रास्ता रोके देख नव्या थोडा घबरा गयीअनूप अकसर उसका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता था कॉलेज में, परन्तु वो नज़रअंदाज़ करके निकल जाती थी | अनूप प्रतिदिन घर के रास्ते में उसे खड़ा मिलता, उससे बात करने का प्रयास करता, अश्लील फिकरे कसता| एक दिन तंग आकर उसने घर में माँ को बता दिया और अगले ही दिन उसके भाइयों ने कॉलेज के प्राचार्य के पास शिकायत दर्ज करवा दी | प्राचार्य से मिली चेतावनी के बाद कुछ दिन अनूप कॉलेज नहीं आया तो नव्या ने चैन की सांस ली, परन्तु ये ख़ुशी अधिक दिन नहीं रह सकी | एक दिन घर लौटते समय बीच सड़क पर तेज़ी से उसके सामने से एक मोटरसाईकिल गुज़री, चेहरे स्कार्फ़ से ढके हुए और पीछे बैठे लड़के ने तेज़ी से उसकी ओर एक बोतल में से कुछ उछाला और फिर नव्या की दर्दनाक चीखों से पूरा यातायात थम गया पर वो मोटरसाईकिल अपने सवारों सहित जाने कहाँ गायब हो गयी |
        अपने खूबसूरत चेहरे के साथ नव्या ने उस दिन अपना आत्मविश्वास भी खो दिया... पिता जी ने क़र्ज़ लेकर सर्जरी भी करवाई पर वो बदसूरत धब्बे और वो असहनीय पीड़ा, नव्या के साथ-साथ उसके परिवार के लिए भी श्राप बन गए | संदेह के आधार पर पुलिस ने अनूप और उसके साथी को गिरफ्तार कर लिया पर साक्ष्य के अभाव में जल्दी ही दोनों ज़मानत पर रिहा भी हो गए | क़र्ज़ में डूबा परिवार हतोत्साहित हो चला था और नव्या के भविष्य की चिंता अलग थी.... अपने परिवार का टूटता हौसला नव्या के लिए संघर्ष की वजह बन गया, कॉलेज की पढ़ाई प्राइवेट करने का निश्चय करके उसने घर में ही बच्चों के ट्यूशन लेना आरम्भ कर दिया | कॉलेज के साथी भी धीरे-धीरे दूर होते गए और नव्या का सहारा बन गयी उसकी डायरी, कब उसका दर्द लफ्ज़ बन कर उतरने लगा पन्नों पर, उसे पता ही नहीं चला | स्नातक की डिग्री के साथ ही तलाश आरम्भ हुई नौकरी की, मगर जहाँ भी गयी उसे निराशा ही हाथ लगी | कहीं उसके चेहरे के दाग तो कहीं अनुभव की कमी आड़े आने लगी, फिर एक दिन अख़बार के पन्ने पलटते हुए उसकी नज़र एक विज्ञापन पर पड़ी ....एक उच्च वर्गीय परिवार को एक विकलांग बच्चे के लिए आया की आवश्यकता थी ...तनख्वाह बड़ी परन्तु अनुभवी को प्राथमिकता |
    हिम्मत जुटा कर नव्या साक्षात्कार के लिए चली गयी, बाहर बगीचे में 8 वर्ष का एक बच्चा खाली पन्ने पर आड़ी तिरछी लकीरें खींच रहा था | नव्या उसके पास गयी तो देख कर हैरान रह गयी न जाने कितनी आकृतियाँ उस कागज़ पर उभर आई थीं | बच्चे ने चेहरा ऊपर उठाया और मुस्करा कर नव्या को अपने पास आने का इशारा किया, उस हादसे के बाद पहली बार किसी की आँखों में अपने लिए बस स्नेह देखा नव्या ने, दया या घृणा नहीं | उसकी मासूम मुसकराहट में नव्या ये देखना ही भूल गयी कि बच्चे के दोनों पैर पोलियो ग्रस्त थे | अनुभव न होने पर भी नव्या को वह नौकरी मिल गयी, शायद बच्चे के माता पिता उसके दर्द को समझ गए थे | उस दिन नव्या को जैसे नयी ज़िन्दगी मिल गयी, 8 साल के प्रभात का साथ उसके लिए प्रेरणा बन गया, शब्दों के साथ अब तस्वीरें भी उभरने लगी थी कैनवस पर | प्रभात की देखभाल और उसके मुस्कराते चेहरे में वो अपना दर्द भूलने लगी थी और यही कारण था कि उसे अपने आस-पास बिखरे रंग दिखाई देने लगे थे | धीरे-धीरे उसकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं और प्रभात के पिता की मदद से उसने अपनी और प्रभात की कलाकृतियों को भी शहर की आर्ट गैलरी में प्रदर्शित किया | वहाँ से कुछ फ्री लांस आर्डर भी मिलने लगे | फिर एक के बाद एक कई कविता संग्रह, कहानी संग्रह, उपन्यास आदि प्रकाशित हुए, और पाठकों और समीक्षकों ने पसंद भी किये | 6 वर्ष जाने कब गुज़र गए पता ही नहीं चला और फिर एक दिन उसके विदा होने का समय आ गया क्योंकि अब प्रभात को उसकी नहीं एक ट्रेनिंग स्कूल की आवश्यकता थी | प्रभात की कला के प्रति रुचि देखते हुए उसे विदेश में कोर्स के लिए भेजा जा रहा था | नव्या को गर्व था अपने विद्यार्थी पर और उसके दूर जाने का दुःख भी क्योंकि प्रभात उसके जीवन का एक अटूट हिस्सा बन चुका था | प्रभात ने जाते हुए नव्या से वादा लिया कि वो किसी भी हाल में न लिखना बंद करेगी न ही अपनी कला को छोड़ेगी

       जिस दिन नव्या को सम्मान दिए जाने की सूचना आई, उसी दिन प्रभात के वापस आने की भी, टेलीफोन पर प्रभात ने वादा किया वो सीधा सम्मान समारोह में पहुंचेगा परन्तु उसे वहाँ न देख नव्या को थोड़ी निराशा हुई थी | एक झटके से गाड़ी उसके घर के सामने रुकी, उसका पूरा परिवार उसके साथ था फिर ये सजावट ! तभी घर का मुख्य द्वार खुला और प्रभात वहाँ अपनी बैसाखियों के सहारे अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए खड़ा था | नव्या दौड़कर उसके पास गयी और उसका माथा चूम लिया, और सम्मान पत्र उसके हाथों में रख दिया, खाली हाथ प्रभात भी नहीं था, एक फाइल उसने नव्या के हाथों में रख दी | नव्या गर्व से उसमें करीने से लगे प्रमाण-पत्र देख रही थी, जो प्रभात को विभिन्न प्रतियोगिताएं जीतने पर मिले थे ... इस बात से अंजान कि प्रभात दोनों आँखें बंद किये हुए अपनी प्रेरणा को मन ही मन धन्यवाद दे रहा था |
©विनिता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)