पञ्च चामर छंद (माँ को समर्पित)


प्रसार धर्म का बढे व पाप का सँहार हो ।

सुबुद्धि ही सदा रहे व उच्च ही विचार हो।

दुखी न दीन ही रहें, सदा दया अपार हो ।

न कर्म से हटें कभी, प्रयास में न हार हो ।

©विनिता सुराना किरण

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)