अग्नि नृत्य

वो थिरकती ही गयी
एक कुशल नृत्यांगना की तरह
उसके सधे हुए कदम 
मानो मिला रहे थे ताल
एक अदृश्य ताल से,
नवयौवना सी लोच लिए
सुर साध रही हो मानो
मंद-मंद बहती पुरवाई के संग...
वो सुनहरी रंगत,
वो हया की लाली,
उसके रूप का तेज़,
जो चुँधिया देता है आँखें
ताकि पतित न कर दे
कोई उसकी पवित्रता, स्निग्धता,
सुर-ताल का वो सम्मोहन
कुदरत की अनमोल शै से
वो अद्भुत साक्षात्कार ....
अपलक देखती ही रही मैं
वो नयनाभिराम दृश्य
'अग्नि-नृत्य' !
©विनिता सुराना किरण

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)