होली गीत

लाल, हरा, पीला न गुलाबी
रंग नहीं कोई चढ़ने पाया
प्रीत के रंग में भीगा मन
दूजा फिर कोई रंग न भाया

याद करूँ वो पहली होली
भीगा तन-मन था हमजोली
नैनों में थी छवि तुम्हारी
हर अभिलाषा तुम पर वारी
कोरा-कोरा जीवन मेरा
मुझको छूकर तुमने महकाया
प्रीत के रंग में .......

पलकों के सब सपने रीते
याद रहें बस पल वो बीते
रंग-अबीर हुए सब हलके
रस के धारे अब भी छलके
जीवन-साथी बन कर तुमने
चिर-बसंत सा मन को हर्षाया
प्रीत के रंग में ........
©विनिता सुराना ‘किरण’

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