आस (मुक्तक)

लौटने की तेरे आस दिल में रही
ख्वाब पलकों में पलते रहे रात भर
तीरगी में जिये रौशनी कम रही
इक दिया ही 'किरण' अब जले रात भर
-विनिता सुराना 'किरण'

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