ग़ज़ल


है बेपीर मुंसिफ क़ज़ा है कहाँ
खिला गुल सके वो फ़ज़ा है कहाँ

हसीं हमसफ़र राह में साथ हो
मिले धूप भी तो सज़ा है कहाँ

जुबां वो न खोले अगर गम नहीं
रहें चुप मगर ये रज़ा है कहाँ

चढ़ा कब्र पर फूल वो चल दिए
हँसी है लबों पर अज़ा है कहाँ

किनारे-किनारे 'किरण' जो चले
कटेगा सफ़र पर मज़ा है कहाँ
©विनिता सुराना 'किरण'

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