सांझ (रोला मुक्तक)

गहराए ज्यूँ सांझ, याद की बदली छाए
राह तकूँ सब भूल, नैन भी नीर बहाए
कोयल कूके बाग़, विरह की धुन वो लगती
कटे नहीं अब रात, चाँद भी अगन लगाए
-विनिता सुराना 'किरण'

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