ख्वाहिशें (मुक्तक)



निरंकुश अमरबेल सी बढती ही रही ख्वाहिशें
छूने को आसमान मचलती ही रही ख्वाहिशें
खो गए चैन-औ-सुकून, आया न इक पल करार
दीमक बन रिश्तों को निगलती ही रही ख्वाहिशें
-विनिता सुराना 'किरण'

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