मुक्तक

खिलखिलाए कभी, कभी रो लें
आज खुद से भी रूबरू हो लें
छोड़ कर फिक्र इस ज़माने की
दो घडी प्रीत में चलो खो लें.
-विनिता सुराना 'किरण'

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