चुनावी ग़ज़ल (9)

समा है चुनावी बनाया है गाना
सुनाती हवाएँ चुनावी तराना

करेंगे हजारों चुनावी ये वादे
कि मुश्किल इरादे समझ इनके पाना

पुराने दिखा ज़ख्म उल्लू बनाए
मगर इनके झांसे में भोलू न आना

बटेंगे कड़क नोट बोतल खुलेगी
ज़रा खुद की थोड़ी समझ भी लगाना

नए खेल सोचो न अब बर्गलाओ
बहुत हो चुका है तमाशा पुराना
-विनिता सुराना 'किरण'

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