नज़्म (कविता)

दर्द देकर के गया प्यार हमारा देखो
थी ज़माने की खता हाल हमारा देखो |

अब कहाँ रोज़ मिले हाथ पकड़ने वाले
दे रहा कौन यहाँ साथ हमारा देखो |

है बहुत देख चुके रंग जमाने के हम
इक नया गीत नया साज़ हमारा देखो |

वो ज़हर घोल गया देख हवाओं में भी
अब न आसान यहाँ वास हमारा देखो |

राहतें मिल न सकी पीर फकीरों से भी
हो गया आज हरा घाव हमारा देखो |

आईना टूट गया ठेस लगी है ऐसी
पर दिखे अक्स उसी का पाश हमारा देखो |

बात दिल की न कहें दर्द दबाए बैठा
पूछता रोज़ ‘किरण’ राज़ हमारा देखो|

विनिता सुराना ‘किरण’

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