आलोक (मुक्तक)



चमकते हो जुगनू से, मेरे अँधेरे मन में,
भर देते हो आलोक, मधुर प्रेम का जीवन में,
अविरल स्रोत है जीवन धारा का, साथ तुम्हारा
वरना बेजान रूह लिपटी थी, जिन्दा कफ़न में.
-विनिता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

लाल जोड़ा (कहानी)

एक मुलाक़ात रंगों से

कहानी (मुक्तक)