पाती (गीत)

लिखने बैठी पाती तुमको
सोचूं क्या मैं लिखूँ पिया
दिन सूने या रातें तनहा
या बेकल सा लिखूँ जिया

खूब सजी है अबकी बगिया
महकी डाली-डाली है
सूना अपना आँगन लागे
घर भी खाली-खाली है
नागिन जैसी डसती यादें
या जलता सा लिखूँ हिया
लिखने बैठी....

हर इक शै में तुमको देखूँ
बातें सारी याद करूँ
सांझे सपने बंद पलक में
बिखर न जाए आज डरूँ
दिन बीते ज्यूँ सदियाँ बीती
हर पल क्या अब लिखूँ पिया
लिखने बैठी .....

रूठे सुर है गाऊँ कैसे
लिख ना पाऊँ गीत नया
लट उलझी है जैसे जीवन
सावन भी अब रूठ गया
क्या-क्या बीता मुझ पर तुम बिन
नैना भीगे लिखूँ पिया
लिखने बैठी....
-विनिता सुराना 'किरण'

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