कुण्डलिया (दीपोत्सव)



बाती जगमग प्रेम की, समता का हो तेल |
दीप जले सदभाव के, मन से मन का मेल ||
मन से मन का मेल, द्वेष को दूर भगाए |
होए तम का नाश, तभी उजियारा आए ||
कण-कण रहे सुवास, नेह की भेजो पाती |
दीपोत्सव की शान, बने है दीपक-बाती ||
-विनिता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

Kahte hai….

Chap 25 Business Calling…

Chap 36 Best Friends Forever