आओ हँस ले ......
बाग़-बगीचे, पेड़ों के नीचे,
जिधर देखो फूलों की बहार हैं.
रेशम-बंध लिए हाथ में,
मजनूओं की लगी कतार हैं.
भाव खाएं कन्याएं, मंद-मंद मुस्काएं,
महंगे तोहफों का इंतज़ार हैं.
जल्दी-जल्दी कर लो आदान-प्रदान,
अगले मोड़ पर डंडा लिए हवलदार तैयार हैं.
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चुलबुल जी थे बड़े सयाने
लगे थे रूठी सखी को मनाने
नाक रगडी, हाथ जोडे फिर भी न मानी
बोले थक-हारकर फिर चुलबुल ज्ञानी
चलो छोड़ो ! मित्रता दिवस अकेले मनाएंगे
फूल-तोहफे लौटाकर, जेब-खर्च बचायेंगे.
खूब लगते भैया नारे
कोई कहें बिजली बचाओ
कोई कहें पानी बचाओ
धीरे से तब आयी आवाज़
क्या नेता, क्या जनता
रहे सब मुझे लूट-खसोट
“मैं हूँ भारत, देश तुम्हारा
कोई तो मुझे बचाओ”
-विनिता सुराना 'किरण'
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