"रोला" छंद




हो मन में संताप, नहीं आस कभी छोड़ो |

समय हुआ प्रतिकूल, नहीं नाते तुम तोड़ो ||

हुआ विनाश अपार, नए संबल तुम जोड़ो |

भटक गए जो राह, दिशाओं का रुख मोड़ो ||



भटक रहा इंसान, राह नहिं दीखे कोई |

जात-धर्म की बाँट, रही मानवता सोई ||

रुपया हैं ईमान, बड़ा नहिं उससे कोई |

मोह, माया व लोभ, पतन के साथी होई ||

-विनिता सुराना 'किरण'

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