नीति दोहे २




फूल खिले खुशबू नहीं, नहीं गुरु  बिन ज्ञान |

साधु भये तो क्या हुआ, मन में रहा गुमान ||

 

जात-पात के नाम पर, खींची गहन लकीर |

दो बिल्ली के खेल में, वानर बना वज़ीर ||

-विनिता सुराना

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