यकीं
रेत के थे जो मकान,
वो लहरों संग बह गए.
पर कदमो के निशाँ 'विनी'
रेत पर फिर भी रह गए.
दिलकश था आसमान, छिटके थे हसीं रंग,
निशा की श्यामल धारा में सभी बह गए.
छुप गया चाँद भी सितारों के संग,
बस टिमटिमाते दीये रह गए.
ख्वाब थे रीते,न मिली ज़मीन,
पलकों से फिसले, आंसुओ में बह गए.
हम पर था जिन्हें यकीं,
बस वही मुट्ठी भर दोस्त रह गए.
Comments
बस वही मुट्ठी भर दोस्त रह गए.
Nice lines.........
Good Evening... Jai jinendra.