वो अजनबी
अनजानी डगर पर मिला, वो
अजनबी
साथी बना और संगी भी.
दिल का रिश्ता, कुछ यूँ जुडा,
मिटा दी, दो शहरों की दूरियाँ
भी.
उसके साथ होने का एहसास
रहता है, खामोशियों में भी,
जुडा है, सफ़र यादों का
तनहाई में भी.
उसकी आवाज़ की कशिश,
गूँजती है, बनकर गीत
जैसे बांसुरी की तान,
छेड़ी है, हवाओं ने भी.
-विनिता सुराना ‘किरण’
Comments
Aap ki is rachna ki prashansha ke liye koi shabad nahi mil rahe hai..... kuch apni si jubani lagati hai aapki yeh baate !!
Jai jinendra !! Good evening !!